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रेलवे विद्युतीकरण के संदर्भ में, "2x25 in railway OHE" का मतलब एक बहुत ही उन्नत और कुशल बिजली आपूर्ति प्रणाली से है, जिसे 2x25 किलोवोल्ट (kV) ऑटो-ट्रांसफार्मर (AT) फीडिंग सिस्टम कहा जाता है। यह तकनीक इलेक्ट्रिक ट्रेनों को बिजली देने के लिए पारंपरिक 25 kV सिंगल-फेज एसी प्रणाली की तुलना में एक महत्वपूर्ण सुधार है, खासकर हाई-स्पीड और भारी माल ढुलाई वाले मार्गों के लिए। OHE (ओवरहेड उपकरण) तारों और उससे जुड़े खंभों का एक नेटवर्क है जो इलेक्ट्रिक इंजनों को बिजली पहुंचाता है। भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में एक मानक रेलवे विद्युतीकरण प्रणाली 25 kV की आपूर्ति का उपयोग करती है, लेकिन 2x25 kV प्रणाली दक्षता और प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए एक चतुर तरीका अपनाती है। 2x25 kV प्रणाली कैसे काम करती है? "2x25" का नाम इस प्रणाली की अनूठी वोल्टेज व्यवस्था को दर्शाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रेन को 50 kV की बिजली मिलती है। इसके बजाय, यह दो अलग-अलग लेकिन संबंधित वोल्टेज स्तर बनाने के लिए ऑटो-ट्रांसफार्मर का उपयोग करता है: 50 kV ट्रांसमिशन: ट्रैक्शन सबस्टेशन (TSS) से रेलवे लाइन के साथ बिजली का मुख्य प्रसारण 50 kV पर होता है। यह एक "फीडर तार" को मुख्य कैटेनरी तार (जिस तार को इंजन का पैंटोग्राफ छूता है) के समानांतर चलाकर प्राप्त किया जाता है। कैटेनरी तार और इस फीडर तार के बीच का वोल्टेज 50 kV होता है। इंजन के लिए 25 kV: कैटेनरी तार और पटरियों (जो करंट के लिए वापसी का रास्ता है) के बीच का वोल्टेज मानक 25 kV ही रहता है। ट्रैक के किनारे नियमित अंतराल (आमतौर पर हर 10-15 किलोमीटर) पर ऑटो-ट्रांसफार्मर लगाए जाते हैं जो 50 kV ट्रांसमिशन सर्किट से वोल्टेज को इंजन द्वारा उपयोग किए जाने वाले 25 kV में बदल देते हैं। 2x25 kV प्रणाली के मुख्य लाभ यह नवीन प्रणाली पारंपरिक 25 kV प्रणाली की तुलना में कई विशिष्ट लाभ प्रदान करती है: सबस्टेशनों के बीच अधिक दूरी: उच्च वोल्टेज (50 kV) पर बिजली संचारित करने से, समान मात्रा में बिजली के लिए करंट (धारा) कम हो जाता है, जिससे लाइन में वोल्टेज ड्रॉप काफी कम हो जाता है। यह ट्रैक्शन सबस्टेशनों को बहुत दूर-दूर (पारंपरिक प्रणाली के लिए 40-50 किमी की तुलना में 60-80 किमी) बनाने की अनुमति देता है, जिससे निर्माण और रखरखाव की लागत कम हो जाती है। बिजली की कम हानि: उच्च-वोल्टेज ट्रांसमिशन सेक्शन में कम करंट के परिणामस्वरूप गर्मी के कारण होने वाली ऊर्जा की हानि कम होती है (I 2 R हानि), जिससे सिस्टम अधिक ऊर्जा-कुशल बनता है।
विद्युत चुम्बकीय हस्तक्षेप में कमी: करंट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पटरियों के बजाय समर्पित फीडर तार के माध्यम से वापस बहता है। ओवरहेड लाइनों में यह संतुलित करंट प्रवाह विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों को रद्द करने में मदद करता है, जिससे आस-पास की दूरसंचार और सिग्नलिंग लाइनों के साथ हस्तक्षेप कम हो जाता है। बेहतर वोल्टेज रेगुलेशन: यह प्रणाली इंजन को अधिक स्थिर वोल्टेज प्रदान करती है, जो उच्च शक्ति वाली इलेक्ट्रिक ट्रेनों के प्रदर्शन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर लंबे और भारी भार वाले मार्गों पर। सिस्टम की क्षमता में वृद्धि: 2x25 kV प्रणाली भारी भार को संभाल सकती है, जो इसे माल गलियारों (Freight Corridors) और हाई-स्पीड यात्री लाइनों के लिए आदर्श बनाती है, जहाँ कई शक्तिशाली इंजन एक साथ महत्वपूर्ण मात्रा में बिजली खींच सकते हैं। भारत में इसका उपयोग इन लाभों को पहचानते हुए, भारतीय रेलवे ने विशेष रूप से अपने उच्च-घनत्व वाले मार्गों और समर्पित माल गलियारों (Dedicated Freight Corridors - DFCs) पर 2x25 kV एटी फीडिंग प्रणाली को तेजी से अपनाया है। इस रणनीतिक कदम का उद्देश्य माल और यात्री यातायात की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अपने विद्युतीकृत नेटवर्क की क्षमता, दक्षता और समग्र प्रदर्शन को बढ़ाना है। Railway OHE 2x25 OHE

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